
यहीं से उपरोक्त प्रकार की कोशिकों का स्वतन्त्र एव गहन अध्ययन का क्रम आरंभ हो गया । इवांस , गेल , एम. कफ़मेन वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा 1981 में चूहों के भ्रूण [एम्ब्रियो :Embryo ]की ब्लोस्टोसिस अवस्था में उपरोक्त गुणों वाली कोशिकाओं के पाए जाने पर सारी शोध जीवधारियों के भ्रूण के इर्द-गिर्द केंद्रित हो गयी ।
वैज्ञानिकों ने पाया कि पुनर्जनन एवं रूपांतरण की '' उक्त कैंसर=ग्रस्त कोशिका '' जैसी क्षमता जीवधारियों के भ्रूण [एम्ब्रियो : Embryo] की कोशिकाओं में भी पाई जाती है , अतः वैज्ञानिकों ने इसे भी भ्रूणीय-कोशिका [ एम्ब्रायोनिक सेल्स : Embryonic-Cells ] ही कहा । इस प्रकार की कोशिकाएं भ्रूण की पांचवे दिन की अवस्था जिसे बलोस्टोसिस अवस्था कहतें हैं में होती हैं ,यह अवस्था पॉँच से सात दिन के मध्य होती है । इस अवस्था में, उस भ्रूण में जो निसंसेचन [ फ़र्टिलिज़ेशन : Fertilization ] के बाद ब्लास्टोसिस अवस्था में 150 से अधिक विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं का समूह बन चुका होता है और यही विभिन्न कोशिका समूह जीवधारी के शरीर में पाए जाने वाले 200 से भी अधिक ऊतकों का निर्माण करता है ,जो आगे चल कर सामूहिक रूप से जीवधारी के शरीर के विभिन् बाह्य-आतंरिक अंगों का निर्माण करते हैं।
किसी पेड़ के 'तने ' [ स्टेम : Stem] में से जिस प्रकार पेड़ के विभिन्न अंग यथा डाली , शाखा , पत्ती , और फल-फूल तथा बीज आदि निर्मित होते हैं उसी प्रकार भ्रूण की ब्लोस्टोसिस अवस्था की इन कोशिकाओं से जीवधारियों के शरीर के अंग निर्मित होते हैं अतः इसी समानता के कारण इन्हे " स्टेम-सेल्स " कहा गया । भ्रूणीय स्टेम सेल्स पर शोध आगे भी जारी रहा।
'' विस्कांसिन विश्विद्यालय [ Univercity] के जेम्स थामसन [मेडीसिन ] की टीम के वैज्ञानिकों ने सर्वप्रथम किसी विशिष्ट कार्य के लिए निर्धारित-निर्देशित '' स्टेम-सेल्स [Stem-cells ] '' को जीवधारियों के भ्रूण -सेल्स [Embryonic-cells ] से अलग प्राप्त कर , उन्हें संरक्षित करने की तकनीकि खोज निकाली । स्टेम-सेल्स की इस खोज-शोध को चिकित्सा- विज्ञानं के क्षेत्र में भविष्य के लिए एक महान उपलब्धि के रूप में रेखांकित एवं स्वीकार किया गया ''
'' ये ' स्टेम-सेल्स' वास्तव में हैं क्या '' :---
" 'आधार-कोशिकाएं अथवा स्टेम-सेल्स [ Stem-cells] ' वे मूल कोशिकाएं है जो आगे चल कर किसी भी जीवधारी [ मनुष्यों सहित ] के शरीर की 200 [दो सौ ] से अधिक विशिष्ट प्रकार की ' कोशिकाओं एवं ऊत्तकों [ Cells एवं Tissues ] का निर्माण करतीं हैं , यही कोशिकाएं व ऊत्तक समूह के रूप में जीवधारियों के ' बाह्य तथा आतंरिक ' अंगों का निर्माण करती हैं " " ये स्टेम-सेल्स गर्भ में भ्रूण की प्रारंभिक अवस्था में , जो पॉँच से सात दिनों की होती है तथा 150 [सौ] से भी अधिक प्रकार की कोशिकाओं का समूह होता हैं , में उपस्थित रहती हैं अतः स्पष्ट है कि स्टेम-सेल्स में किसी के भी शरीर की सभी कोशिकाओं : ऊतकों आदि के निर्माण की क्षमता होती है आवश्यकता के अनुसार स्टेम -सेल्स को किसी भी मानव अंग के ऊतकों में परिवर्तित किया जा सकता है। अतः स्पष्ट है कि ये हड्डियों, मांसपेशियों या मस्तिष्क की कोशिकाओं , के रूप में विकसित कि जा सकती हैं.। " नवजात - बच्चे के '' नाभि-नाल अथवा गर्भ - नाल { Emryonic-Cord }'' में स्थित एवं '' गर्भ - कवच {Placenta }'' पर लगे रक्त में * स्टेम-सेल्स * की प्रचुर मात्रा होती है यह ऊतकों एवं कोशिकाओं का असीमित तथा अक्षय भंडार होता है " |
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- इतनी क्रन्तिकारी खोज के बाद भी अभी हाल तक इसका प्रयोगशाला - अनुप्रयोगों से आगे बढ़ कर व्यवहारिक उपयोग अर्थात क्लीनिकल - उपभोग कर सकने वाली परिस्थितियाँ नही बन पा रही थीं क्यों कि वैज्ञानिक ,सामाजिक एवं नैतिक { धार्मिक भी } आधार पर मानव-भ्रूण की ' क्लोंनिग ' पर विवाद एवं विरोध आरंभ हो गया था ,जो हाल-फिलहाल अभी तक जारी है { परन्तु सेलुलर-प्रोग्रामिंग तकनीकी, :: Cellular-Programming technics :: की खोज से विरोध के स्वर लगभग समाप्त होने लगे हैं ; इस विन्दु पर आगे चर्चा करेंगे }
- विरोध का आधार या कारण !?! क्यों कि आरंभिक खोजों-शोधों में '' स्टेम -सेल्स { आधार-कोशिकाओं } '' प्राप्ति के स्रोत के रूप में 'जीवधारियों ' [मनुष्य सहित ] के भ्रूण {Embryo } की पॉँच से सात दिन की भ्रूण-अवस्था {Embryonic-stage ] से माना गया था इस अवस्था में जीवधारियों का भ्रूण 100 { सौ } से अधिक आधार -कोशिकाओं=स्टेम-सेल्स , का ऐसा समूह होता है जो इतना परिपक्व माना जाता है कि वे आगे चल कर जीवधारियों के अंगों की कोशिकाओं तथा ऊतक का निर्माण कर सकता है दूसरे शब्दों में कहा जाए तो '' किसी जीवधारी का सक्रिय- भ्रूण {निसंसेचित } ही आगे चल कर एक ' पूर्ण जीवधारी ' को जन्म देने में सक्षम होता है ; परन्तु किसी स्टेम-सेल्स प्राप्ति की इस प्रक्रिया में भ्रूण नष्ट हो जाता है , और यही मानव-क्लोनिग के विरोधियो के विरोध का मूल - आधार है , वे इसे भ्रूण-हत्या के रूप में लेते हैं
- उनका तर्क है , " किसी व्यक्ति की चिकित्सा या जीवन- रक्षा के लिए किसी जन्म लेने वाले परन्तु अभी तक अजन्में इन्सान की जान लेना ' अमानवीय ' है , { उनका यह सारा तर्क केवल मनुष्य-जाति के सन्दर्भ में है , अन्य जीवधारियों अर्थात पशु-पक्षियों के लिए नही }, क्रिश्चियनटी में पॉप-समर्थक अपनी धार्मिक मान्यताओं के कारण भी इसका विरोध करते हैं
भ्रूण अवस्था के अतिरिक्त, क्या कोई ऐसा अन्य स्रोत नही है कि जिससे निर्दोष , निर्विरोध एवं निर्विवादित ढंग से पर्याप्त मात्रा में आधार-कोशिकाएं अथवा ' स्टेम-सेल्स ' प्राप्त किए जा सकें ?
अभी तक तो इस संभावना को एक कोरी कल्पना ही समझा जाता रहा था , परन्तु विज्ञान की नई शोधों व खोजों से अब यह सम्भव हो चुका हैवैज्ञानिकों का कहना है कि स्टेम सेल के इस्तेमाल से चिकित्सा क्षेत्र में भारी कामयाबी मिल सकती है लेकिन धार्मिक संगठन नैतिकता के आधार पर इसका विरोध करते हैं. स्टेम सेल क्लिनिक में कृत्रिम तरीके से तैयार किए गए भ्रूण से निकाले जाते हैं जिनके विकसित होने की संभावना नहीं रहती है. स्टेम सेल को विकसित कर इसे ज़रुरत के मुताबिक किसी भी मानव अंग के ऊतकों में परिवर्तित किया जा सकता है. ये हड्डियों, मांसपेशियों या मस्तिष्क की कोशिकाएँ हो सकती हैं. एक भ्रूण से असीमित आपूर्ति हो सकती है क्योंकि सेल लाइन्स को लगातार बढ़ाया जा सकता है. शोधकर्ता स्टेम सेल निकालने के लिए भ्रूण पर निर्भरता को ख़त्म करने की भी कोशिश कर रहे हैं. किसी भी अन्य कोशिकाओं से इसे विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं. क्योंकि सर्व-प्रथम 'स्टेम-सेल्स को भ्रूण की ब्लोस्टोसिस अवस्था से प्राप्त किया गया था और जिसे निर्देशित किया जा सके ,अतः इस प्रकार के स्टेम-सेल्स /आधार कोशिका की इस अवस्था को " ब्लोस्टोमा अवस्था " या स्थिति कहा जाने लगा है । हाल में जापान के क्योटो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक-खोजकर्ताओं ने "आई .पी . एस. सी . "नामक एक ऐसी तकनीकी का विकास किया है , जिसमें किसी व्यस्क कोशिका की जैविकी-संरचना में ' जेनेटिक - रीप्रोग्रमिंग द्वारा ऐसा परिवर्तन कर दिया जाता है कि उक्त ' चयनित-कोशिकायें ', भ्रूण से प्राप्त 'स्टेम-सेल्स जैसा ही व्यवहार कराने लग जाती हैं । वर्त्तमान में 'स्टेम -सेल्स ' प्राप्ति लिए तत्संबंधित व्यक्ति कि त्वचा की सामान्य कोशिका का उपयोग किया जाना आरंभ हो चुका है इससे पूर्व भी नाक अदि की प्लस्टिक-सर्जरी के लिए गाल , अथवा बाहं की त्वचा का प्रयोग किया जाता रहा है । इस उल्लेख से सामान्य त्वचा का महत्त्व समझा जा सकता है शोधों से सम्बंधित जो भी समाचार या सूचनाएं प्राप्त हो रही उनसे यही ज्ञात होता है कि आधार-कोशिकाओं या स्टेम-सेल्स के स्रोत के रूप में शोध जीवधारियों की सामान्य - त्वचा पर केंद्रित हो गयी है । जर्मनी के वैज्ञानिकों ने पुरूष -वीर्य से स्टेम सेल्स प्राप्त करने की तकनीकी खोज ली है । पुरूष-वीर्य से प्राप्त स्टेम-सेल्स उसी प्रकार कार्य करेंगे जिस पाकर भ्रूण से प्राप्त स्टेम- सेल्स कार्य करते हैं । कोलंबिया तथा हॉवर्ड विश्वविद्यालय के चिकित्सा - वैज्ञानिकों ने किसी 'स्त्री रोग ' सन्दर्भ में , तत्संबंधित रोग -ग्रस्त स्त्रियों की सामान्य -त्वचा की कोशिकाओं से स्टेम - सेल्स प्राप्त की गई थी । कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के डर्माटोलोजी विभाग के प्रोफेसर डॉ० ' इसरोफ़ ' (एम. ड़ी. ) के अनुसार प्रयोग शाला में रोगियों की सामान्य त्वचा से प्राप्त स्टेम-सेल्स से बनाई गई आखों की कोर्निया का प्रत्यारोपण उनकी आंख में किया गया ,70% से अधिक रोगियों में सफलता प्राप्त हुयी और उन रोगियों को नेत्र - दृष्टि प्राप्त हो गयी और वे देखने लगे |
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क्योंकि सर्व-प्रथम 'स्टेम-सेल्स को भ्रूण की ब्लोस्टोसिस अवस्था से प्राप्त किया गया था और जिसे निर्देशित किया जा सके ,अतः इस प्रकार के स्टेम-सेल्स /आधार कोशिका की इस अवस्था को " ब्लोस्टोमा अवस्था " या स्थिति कहा जाने लगा है ।
सामान्य-कोशिका को स्टेम -सेल्स या आधार-कोशिका में सक्रिय कराने के लिए उसे ''ब्लास्टोमा अवस्था ''में बदलना होगा जिससे उसे इच्छित अंग निर्माण के लिए निर्देशित किया जा सके ।
यह किस प्रकार सम्भव होगा ? संक्षिप्त [...]
9 टिप्पणियाँ:
ब्लोगिंग जगत में स्वागत है
लगातार लिखते रहने के लिए शुभकामनाएं
अच्छी जानकारी
कविता,गज़ल और शेर के लिए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
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कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लिए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
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रेखा चित्र एंव आर्ट के लिए देखें
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bahut badhiya lekha hai...bahut bahut subhkamnay...sankar-shah.blogspot.com
मेरी सांसों में यही दहशत समाई रहती है
मज़हब से कौमें बँटी तो वतन का क्या होगा।
यूँ ही खिंचती रही दीवार ग़र दरम्यान दिल के
तो सोचो हश्र क्या कल घर के आँगन का होगा।
जिस जगह की बुनियाद बशर की लाश पर ठहरे
वो कुछ भी हो लेकिन ख़ुदा का घर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर कौ़में बनाने वालों सुन लो तुम
काम कोई दूसरा इससे ज़हाँ में बदतर नहीं होगा।
मज़हब के नाम पर दंगे, सियासत के हुक्म पे फितन
यूँ ही चलते रहे तो सोचो, ज़रा अमन का क्या होगा।
अहले-वतन शोलों के हाथों दामन न अपना दो
दामन रेशमी है "दीपक" फिर दामन का क्या होगा।
@कवि दीपक शर्मा
http://www.kavideepaksharma.co.in (http://www.kavideepaksharma.co.in/)
इस सन्देश को भारत के जन मानस तक पहुँचाने मे सहयोग दे.ताकि इस स्वस्थ समाज की नींव रखी जा सके और आवाम चुनाव मे सोच कर मतदान करे.
अच्छी जानकारी दी आपने. स्वागत ब्लॉग परिवार में.
बेहतरीन जानकारी प्रदान कर रहे हैं आप......शुभकामनाऎं
purush wirya se prapt stem-cell us tarike se bilkul kam nahin kar sakti jis trike se bhrun se prapt stem-cell.
shubhkamnaye aapko ttha aapke blog ko
jai hind
आज सारथी पर पधार कर आप ने जो टिप्पणियां दीं उनके लिये आभार.
आपका चिट्ठा जनोपयोगी है, लेकिन आप ने जो थीम चुना है वह आकर्षक नहीं है. इतने जटिल थीम के बदले एक सरल से थीम से चालू कीजिये. उदाहरण के लिये http://maatashri.blogspot.com/ को देख लें.
जब पाठक बढने लगे और आपको कुछ अनुभव हो जाये, तब अन्य थींमों का प्रयोग करें!!
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
मनुष्य के ज्ञान की नवीन कडी़ की सूचना बेहतर है...अच्छा लगा...
अच्छा काम..साधुवाद..
वैज्ञानिक जानकारियों के सामाजिक सरोकारों और मूल्यों से अंतर्संबंधों का जिक्र भी करें तो बेहतर रहेगा...
best, narayan narayan
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